वात पित्त कफ क्या हैं और इनके लक्षण क्या हैं ?
आयुर्वेद की परंपरा हमारे भारत देश में कई हजार वर्षो से चली आ रही है जो शरीर के साथ साथ मन को कैसे स्वस्थ रखे यह सिखाती है आयुर्वेद एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है "जीवन का ज्ञान " I आयुर्वेद हमें जीवन को जीने की कला तो सिखाता ही है साथ ही साथ यह भी सिखाता है कि हम नियमो का पालन करें ताकि हमारा शरीर सही से कार्य करता रहे और यदि कोई विकार उत्पन हो तो उसे कैसे ठीक किया जाए I आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि हमारे शरीर के ८५ % विकार हम बिना किसी दवा की ठीक कर सकते हैं बस कुछ नियम बनाने होंगे और उनका कढ़ाई से पालन करना होगा I
सबसे पहले हम ये जान लेते हैं कि आयुर्वेद में शरीर को सरलता से समझने के अलग अलग भागो में बांटा गया है , प्रकृति में हर चीज चाहे वो जीव- जंतु हो या पेड़-पौधे हमसे किसी ना किसी तरह से जुड़े हुए हैं आयुर्वेद हमें जीवन को जीने की कला तो सिखाता ही है साथ ही साथ यह भी सिखाता है कि हम नियमो का पालन करें ताकि हमारा शरीर सही से कार्य करता रहे और यदि कोई विकार उत्पन हो तो उसे कैसे ठीक किया जाए I
आयुर्वेद में शरीर को सरलता से समझने के अलग अलग भागो में बांटा गया है , प्रकृति में हर चीज चाहे वो जीव हो जंतु हो या पेड़-पौधे हमसे किसी न किसी तरह से जुड़े हुए हैं I हर चीज जो हमारे आस पास है पांच तत्वों से मिलकर बनी है जिन्हे हम संक्षिप्त में भगवान कहते हैं , भगवान पांच अक्षरों से मिलकर बना है जिसमे भ - भूमि , ग - गगन व - वायु , अ - अग्नि एवं न - नीर / जल को प्रदर्शित करता है I
शरीर के स्वस्थ रहने हेतु इन पंचतत्वों का संतुलित रहना आवश्यक है I
इन पंचतत्वों के असंतुलित होने से जो रोग या विकार उत्पन्न होते हैं उन्हें तीन समूहों में बांटा गया है ...
१. वात - वायु + गगन
वायु और गगन या आकाश तत्त्व में असंतुलन होने से वात रोग उत्पन्न होते हैं जैसे पेट में गैस , बेचैनी नींद कम आना , बदन दर्द , जोड़ों का दर्द , क्रोध आना , मन् स्थिर न रहना , हृदयाघात इत्यादि ८० तरह के रोग जिनमे हवा फिर जाना और लकवा मार जाना भी शामिल हैं I वात सामान्यता ६० वर्ष की आयु के बाद बिगड़ता है परन्तु हमारे खान पान और रहन- सहन के कारण ये काम उम्र वालो को भी होने लगा है I
२. पित्त - अग्नि + जल दोनों तत्वों का शरीर में असंतुलन होने पर पित्त रोग उत्पन्न होते हैं जैसे खट्टे डकार , बदहज़मी , भूख न लगना , चेहरे पर दाने निकलना , आँखों में पानी आना , मुँह में छाले होना , पेट में छाले होना , बुखार , बबासीर इत्यादि I पित्त रोग सामान्यता १४ से ६० वर्ष तक ज्यादा प्रबल होते हैं परन्तु सही भोजन सही समय पर न लेने और खाने के बाद एवं असमय जल पीने से पित्त बिगड़ जाता है I
३. कफ - पृथ्वी + जल तत्वों के असंतुलन से कफ रोग उत्पन होते हैं जैसे सर्दी , खांसी , जुखाम , गला दर्द, मोटापा, पेट निकलना इत्यादि I कफ का प्रकोप १४ वर्ष की आयु तक अधिक होता है , कफ का प्रभाव क्षेत्र सिर से छाती तक होता है I
कैसे पता करे कि हमारे शरीर की प्रकर्ति कैसी है है , इसके लिए बागभट्ट ऋषि ने कुछ लक्षण बताये हैं जिन्हे देख कर आप पता कर सकते हैं कि कौन से दोष के कारण शरीर में विकार उत्पन्न हो रहे हैं I
१. वात प्रकर्ति वाले व्यक्ति के लक्षण :- वजन कम , शरीर पतला , जल्दी- जल्दी बोलने वाला , तेज़ चाल, गर्मी पसंद आती है , पसीना कम आता है , भूख जल्दी लगती है और एक दो रोटी खाके ही मर जाती है , बाल और त्वचा रूखी रहती है , आँखे छोटी और मटमैली होती हैं , शरीर के जोड़ो जैसे गर्दन , टखना , कंधे आदि से कट कट की आवाज आती रहती है , रटने में तेज़ होते हैं परन्तु जल्दी भूल जाते हैं , मन चंचल होता है कभी खाली नहीं बैठ सकते , ज्यादा सोचते रहते हैं , नींद कच्ची होती है थोड़ी से खट्ट बट्ट से खुल जाती है तथा ये चिंता बहुत करते हैं I
२. पित्त प्रकर्ति वाले व्यक्ति के लक्षण :- शरीर मध्यम होता है , सामान्य बोलते हैं न तेज़ न धीरे , ठण्ड पसंद करते हैं , पसीना बहुत आता है , बहुत भूख लगती है , त्वचा संवेदनशील होती है और लाल धब्बे पढ़े रहते हैं , त्वचा तैलीय एवं सामान्य होती है न पतली न मोटी , बाल सीधे और मुलायम होते हैं , चेहरे पर झाइयां रहती हैं , पढ़ने में औसत होते हैं पर पढ़ा हुआ जल्दी भूलते नहीं , फुर्तीले और गुस्से वाले होते हैं , आँखों की पुतली पर लाल धारिया बनी रहती हैं , जो सोचते हैं वो करके ही चैन लेते हैं , नींद सामान्य होती है , अपने अनुरूप काम न होने पर परेशान और भावुक हो जाते हैं I
३. कफ प्रकर्ति वाले व्यक्ति के लक्षण :- शरीर मोटा , धीरे धीरे बोलते हैं और धीरे धीरे चलते हैं , सामान्य मौसम में खुश रहते हैं , पसीना बहुत कम आताहै , भूख सामान्य लगती है पर वजन जल्दी बढ़ता है , त्वचा तैलीय एवं मोटी होती है , त्वचा सम्बन्धी रोग ज्यादा होते हैं , बाल मोटे और घुंगराले होते हैं कंघी की जरुरत नहीं पड़ती , आँखों की पुतली एक दम सफ़ेद रहती है और आँखे सुंदर होती हैं जैसे छोटे बच्चे की होती हैं , शरीर बेडौल होता है , धीरे धीरे पढते हैं और कभी भूलते नहीं , शांत स्वभाव के होते हैं , काम करने में आलसी होते हैं , नींद बहुत लम्बी और गहरी होती है , कम बोलते हैं और किसी की परवाह नहीं करते अपने काम से काम रखते हैं
बहुत ही विस्तार से अपने वात पित्त और कफ के बारे में बताया है, ये जानकारी अच्छी लगी .....
ReplyDeleteThanks A lot
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